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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

2. वृत्ति

प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?

उत्तर -

नाट्यवृत्ति - नाटक आदि प्रबन्धों में निबद्ध नायक-नायिका आदि के विविध प्रकार के कार्य व्यापारों को वृत्ति की संज्ञा दी गयी है। वस्तुतः 'वृत्ति' अभिनय मात्र का प्रणयन करती है। वृत्तियों और रसों के पारस्परिक सम्बन्धों पर विचार करने के क्रम में यह कहना प्रासांगिक होगा कि वृत्तियाँ ही नाटकों के प्राण तत्त्व हैं। आचार्यों ने बड़े ही विस्तार के साथ वृत्तियों की विशेषताओं पर विचार किया है।

वृत्तियों के महत्व को ध्यान में रखकर ही नाट्य दर्पणकार ने इसे नाट्य की माता कहा है।

अंग्रेजी नाट्य साहित्य में जिसे शैली माना गया है, भारतीय नाट्य साहित्य में उसे वृत्तियाँ कहते हैं।

मुख्य रूप से इसके चार विभाग किये हैं-

1. कैशिकी - श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति में इसकी प्रधानता होती है।
2. सात्विक वृत्ति - इसका सम्बन्ध वीर रस के अभिव्यंजन से है।
3. आरभटी - रौद्र और वीभत्स रस के प्रतिपादन के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
4. भारती -इसका सम्बन्ध सभी रसों से माना गया है।

स्पष्ट है कि प्रत्येक का सम्बन्ध विभिन्न रसों से सप्तवत्त है। सच पूछा जाए तो 'वृत्त' तत्व तो एक रूप ही है, क्योंकि 'कायिक', 'वाचिक' और 'मानसिक' व्यापारों में पूर्णरूपेण असम्बद्धता निरूपित करना सर्वथा संम्भव है, फिर भी प्रत्येक की यथास्थान प्रधानता की दृष्टि से वृत्ति तत्व को चतुर्विध रूप प्रदान किया गया है।

भरत ने वेद चतुष्पद्य से अंग चतुष्पद्यात्मक नाट्यवेद की भाँति वृत्त - चतुष्पद्य का भी विकास माना है।

1. कैशिकी - जिसमें नाना प्रकार की मनोरम वेश-भूषा की शोभा रहती है, जो रमणी पात्रों से आश्चर्यजनक लगती है, जिसमें नृत्य, गीत आदि की योजना होती है, जिसमें कामोपभोग अथवा रति सुख आदि बुधविध व्यापारों की प्रधानता होती है। जिसमें सुन्दर हाव-भाव आदि का प्राबल्य होता है उसे कैशिकी वृत्ति कहते हैं। स्पष्ट है कि इस वृत्ति में स्त्री बाहुल्य, नेपट्ायवैचित्र्य, काव्यवहार तथा संगीत आदि की प्रधानता होती है। इस वृतित का सीधा सम्बन्ध श्रृंगार रस और विलासमय हास परिहास से होता है। अर्थ स्पष्ट है और वह यह कि लालित्य और माधुर्य का समस्त क्षेत्र कैशिकी का ही है। कैशिकी के मुख्य चार भेद आचार्यों ने माना है।

(i) नर्म - नर्म को प्रिय जन का क्रीड़ा विलास कहा गया है। इसकी परिभाषा भरत ने निम्न प्रकार से दी है-

'आस्थापित श्रृंगार विशुद्धकरणं निवृत्त वीररसम्।
हास्यप्रवचनबहुलं नर्म त्रिविधं विचानीयात् ॥
ईर्ष्याक्रोधप्रायं सोपालम्मकरणानुविद्धचं।
आत्मोपक्षेपकृतं सविप्रलम्भं स्मृतं नर्म ॥

इसमें भी तीन विशेषताएँ देखी जा सकती हैं- पहली विशेषता में केवल हास्य-परिहास्यमय लीला, दूसरी में श्रृंगार गर्म हास्य लीला, तीसरी में भयमिश्रित हास लीला। पहली विशेषता में सम्बद्ध हास्य पूर्वक क्रीड़ा विलास के उदाहरण के लिए रत्नावली का यह प्रसंग दिया जा सकता है-

"वासवदत्ता - (चित्रफलक देखकर हंसी के साथ) यह जो तुम्हारे पास खड़ी चित्रित की गयी है क्या यह भी आर्य बंसतक की चित्रकारी है? दूसरी विशेषता वाले अर्थात् श्रृंगारगर्म क्रीड़ा विलास के उदाहरण स्वरूप अभिज्ञान शाकुन्तल का निम्न प्रसंग रखा जा सकता है-

" शकुन्तला (दुष्यन्त से ) - यदि यह मधुकर असन्तुष्ट रहा तो क्या कर लेगा?

" राजा - यह कर लेगा। ( कहकर चुम्बन से शकुन्तला का मुँह ढँक देता है | )

तीसरी विशेषता वाले अर्थात् भय मिश्रित क्रीड़ा विलास के उदाहरण के लिए यह प्रसंग देखा जा सकता है- 'सुसंगता - (चित्र देख लेने पर ) मुझे यह सब और यह चित्त, सब कुछ पता चल गया है। अब मैं महारानी को जाकर बताती हूँ।

(ii) नर्मस्फूर्ज - प्रेमी-प्रेमिका का ऐसा नवसंगम जिसके आरम्भ में आनन्ददायक और अन्त में प्रतिनायक के कारण भय की स्थिति आती है यह कैशिकी का नर्मस्फूर्ज भेद है। उदाहरणार्थ - 'नायक ( संकेत स्थान पर अभिसारिणी मालविका से मिलने पर ) – प्रिय ! इस प्रेम - मिलन में तुझे भय क्यों हो? मैं तो पता नहीं कब से तेरे प्रेम का पुजारी हो गया हूँ। तुझे तो जैसे मधवी लता सहकार पादप से मिले वैसे ही मुझ से मिल जाना चाहिए। "

मालविका - “प्रियतम् ! मैं क्या करूँ ! महारानी का डर मुझे ऐसा लगा है कि मैं अपनी यह कामना भी पूरी नहीं कर सकती।

(iii) नर्मस्फोट - भय, हास्य, हर्ष, त्रास, रोष आदि विविध भावों से युक्त किंचिन्मात्र अभिव्यक्ति, प्रेमी-प्रेमिका के रति भाव के वैचित्र्य को कैशिकी के नर्मस्फोट के अन्तर्गत रखा जा सकता है। उदाहरणार्थ – 'मकरन्द - माधव को यह सब क्या हो रहा है। चाल में आलस, दृष्टि की शून्यता, शरीर में म्लानि, श्वास का बाहुल्य पता नहीं क्या रोग है। यह सब रोग नहीं, बस मालती के प्रेम का प्रभाव है। संसार में काम का शासन अक्षुण्ण है, यौवन में चित्त को कौन सम्भाल सकता है और सौन्दर्य और माधुर्य तो सड़ा हृदय को उद्वेलित करने के लिए ही उत्पन्न हुए हैं। स्पष्ट है कि चाल आदि भाव लेशों से मालती के प्रति माधव के प्रेम का कुछ-कुछ अवश्य हो संकेत हो रहा है।

(iv) नर्मगर्म - फ्रेमी छद्म वेश धारण कर प्रेमिका के साथ प्रेम प्रदर्शन करता है, ऐसे प्रसंग को नर्मगर्म कैशिकी के अन्तर्गत रखा जा सकता है। उदाहरण के रूप में मालती माधव का वह प्रसंग रखा जा सकता है जहाँ माधव, मालती की सखी के वेष में, मालती को, उसके मरण निश्चय से डिगाने की सफल चेष्टा करता है।

2. सात्वति वृत्ति - इसके द्वारा सत्व, शौर्य, त्याग, दया, डाँट फटकार, हर्ष और धैर्य आदि का प्रकाशन होता है। प्रसन्नता की प्राप्ति स्वाभाविक है। श्रृंगार का भी पुट इसमें उपलब्ध होता है। इसमें अद्भुत रस के प्रकाशन की विलक्षण सामर्थ्य होती है।

सात्वती वृतित - अनुकार्य पुरुषों के विविध मानसिक व्यापारों को विभिन्न रूपों में प्रकाशित करती है। आंगिक, वाचिक, सात्विक, अभिनय से युक्त नट के मानसिक कार्यकलाप का नाम सात्वती वृत्ति है नाटकीय चरित्रों के मानसिक व्यापार विभिन्न प्रकार से व्यक्त होते हैं, कभी विचित्र गम्भीर युक्तियों द्वारा, कभी एक कार्य की समाप्ति के पूर्व दूसरे कार्य की तत्परता द्वारा कभी विरोध पक्ष से उत्तेजना के द्वारा, कहीं नीति के दांव पेंच से, संक्षेप में अनुकार्य चरित्रों का जो भी व्यक्तित्व प्रकाशन है उन सबों को एक शब्द में 'सात्वती वृत्ति' कहा जाता है। इसके भी चार अंश विशेष की कल्पना आचार्यों ने की है। निम्न प्रकार इसके चार विभाग है-

(i) उत्थापक - इसका सम्बन्ध शत्रु पक्ष को उत्तेजित करने वाली वाणी से है। उदाहरणार्थ- तुम मेरी आँखों के सामने आये मुझे आनन्द देने के लिए, आश्चर्यचकित करने के लिए और दुःख भी देने के लिए। तुम्हें देखते भलता मेरी आँखों में तृप्ति कहाँ? मैं तुम्हारा शत्रु ठहरा, मेरा और मेरा और तुम्हारा संग-साथ कहाँ और संग-साथ का आनन्द भी कहाँ? व्यर्थ मैं कुछ नहीं कहता, बरू अपने हाथ में धनुष पकड़ो मैं भी देखूँ कि महावीर परशुराम के विजेता के हाथ में कितना दम है। उपर्युक्त कथन में नाट्यात्मक वैशिष्ट्य, सात्वती वृतित के उत्थापक रूप अंश का ही वैशिष्ट्य कहा जा सकता है।

(ii) सांघात्य - सांघात्य का अभिप्राय मंत्र शक्ति, अर्थ शक्ति, दैव शक्ति आदि-आदि शक्तियों से है। उदाहरणार्थ – महाकवि विशाखदत्त रचित 'मुद्राराक्षस चाणक्य की राजनीति के दांवपेंच से राक्षस के सहायकों में फूट पैदा करने का वर्णन, मंत्र शक्ति कृत सांघात्य की ही योजना है।

(iii) संलाप - ऐसी गम्भीर उक्ति जिसमें विभिन्न प्रकार के भावों के प्रकाशन की सामर्थ्य हो उसे संलाप कहते हैं। उदाहरणार्थ - राम - ओह ! क्या यही वह परशु है जिसे कुमार कार्तिकेय और उनके सहायकों पर आपकी विजय से प्रसन्न हृदय भगवान् शंकर ने सहदागों वर्षों तक धनुर्वेद का अभ्यास करने वाले आप जैसे अपने शिष्य को, पुरस्कार रूप में दिया है? परशुराम-राम ! तुमने ठीक कहा, हमारे पूज्य आचार्य शंकर का यही वह प्रिय परशु है। इत्यादि में जो वृत्ति है वह 'संलाप' रूप सात्वती वृत्ति है।

(iv) परिवर्तक - एक कार्य की की समाप्ति के पूर्व दूसरे प्रकार के कार्य की तत्परता सूचना जिससे मिलती है उसे परिवर्तक सात्वती वृत्ति कहते हैं। उदाहरणार्थ - भीम- सहदेव। जाओ, तुम युधिष्ठिर का साथ दो। मैं भी तब तक अस्त्रागार में चलता हूँ और अस्त्र लेकर आता हूँ और मुझे द्रौपदी से भी तो विदा लेनी है।

3. आरभटी - अनृत भाषण, छल प्रपंच, द्वन्द्व युद्ध तथा रौद्र आदि रसों से युक्त वृत्ति आरभटी वृत्ति कहलाती है। यह कायिक, वाचिक तथा मानसिक सब प्रकार के अभिनयों से युक्त और सब प्रकार के व्यापारों वाली वृत्ति है।

शत्रु का बध अथवा बंधन आदि इसी वृत्ति के बाह्य रूप हैं। इसके भी प्रमुख चार भेद हैं-

(i) वस्तूत्थापन - वह है जिसे माया आदि के द्वारा वस्तु का उत्थापन होता है। उदाहरणार्थ उदात्तराघव की इस सूक्ति- 'आकाश मण्डल को आच्छन्न'। करने वाले घनघोर संत समूह से अकस्मात् ऐस लगता है जैसे भगवान भाष्कर के भी प्रचण्ड किरण समूह पराजित होते जा रहे हैं और चारों ओर भयंकर रूण्डमुण्ड़ों के रूधिरपान से फटते से प्रतीत होने वाले, पेटों के फलाये और कन्दरोपम मुखों से आग की सी लपटें निकलते श्रृंगालों में भीषण चीत्कारमचाना प्रारम्भ कर दिया है। उपर्युक्त उक्ति में जिस मनोव्यापार का प्रकाशन है उसमें आरभटी का ही वस्तुत्थापन रूप हैं।

(ii) संफेट - वह आरभटी प्रकार है, जिसे क्रुद्ध और त्वराशील पक्ष और विपक्ष परस्पर रामाघात कहा जाता है। उदाहरणर्थ हम कह सकते हैं कि 'मालती माधव' में 'माधव' और 'अघोरघष्ट' का जो घात-प्रतिघात वर्णन है उसमें संफेट की ही रूप रेखा प्रस्तुत है।

(iii) संक्षिप्ति - संक्षिप्ति वह आरभटी भेद है जिसे कौशल द्वारा अथवा और किसी प्रकार से वस्तु विशेष की संक्षिप्त रचना कहा है।

(iv) अवपातन - अवपातन वह आरभटी प्रकार है जिसमें यातायात, त्रास, हर्ष आदि-आदि का सम्मेलन है।

आचार्यों द्वारा स्वीकृत उपर्युक्त चार वृत्तियों के अतिरिक्त भोज ने अपने सरस्वती कंठाभरण में दो और वृत्तियों की कल्पना की है— कोमल अर्थ में प्रौढ़ सन्दर्भ को प्रकट करने वाली माध्यम कैशिकी, कोमल सन्दर्भ में प्रौढ़ अर्थ को प्रकट करने वाली 'मध्यमारभटी' की है।

वृत्तियों के विषय में भरत ने अपने नाट्यशास्त्र में एक अभिनव कल्पना की है— प्रलय के बाद नारायण विष्णु का मधुकैटभ नामक दैत्यों से जो युद्ध हुआ उस युद्ध में विष्णु की चेष्टाओं से नाट्यवृत्तियों की उत्पत्ति हुई। भारती विष्णु के युद्ध के समय पद-संचालन से पड़े पृथ्वी पर भार से उत्पन्न हुई। उनकी ओजस्विनी वीर रसोचित चेष्टाओं से सात्वती वृतित का जन्म हुआ। विष्णु ने जो - ललित लीला तथा विचित्र आंगिक अभिनय के साथ शिखा बांधी उससे कैशिकी का उद्भव हुआ तथा उन्होंने जो आवेग से युक्त होकर नाना प्रकार की युद्ध चेष्टाएँ की उनसे आरभटी वृत्ति का विकास हुआ।

4. भारती - भारती वृतित को रूपक प्रबन्धों में चित्रित चरित्रों का वाग्व्यापार भरत ने कहा है। भारती वृत्ति शब्द वृत्ति है, इसमें सभी नाट्याचार्य सहमत है। रसार्णव सुधाकर ने भारती को शब्दवृत्ति ही कहा है। भारती वृतित के 'वाकप्रधान वृत्ति' होने में तो कोई विशेष विवाद नहीं किन्तु 'पुरूषप्रयोज्या', 'स्त्रीवर्जिता' और 'संस्कृतवाक्युक्ता, मानने में निश्चय ही एक विवाद का रूप सामने आ जाता है। सम्भव है प्रधानपुरुष चरित्रों के संस्कृत वाग्व्यापार को ध्यान में रखते हुए भरत ने वाक्युक्तता कहना चाहा है। स्त्री चरित्रों के वाग्व्यापार उनके हावभावों से प्राय: अनुप्राणित रहा करता है, इसलिए शुद्ध भारती का दर्शन सर्वथा असम्भव है। भारती वृत्ति और वाचिक अभिनय का बड़ा ही गहरा सम्बन्ध है।

यह वृतित रूपक के समस्त भेदों और समस्त रस भेदों की वृत्ति है। आचार्य रामचन्द्र ने स्पष्ट रूप से कहा है- 'सर्वरूपकभावित्वात्, रसानां च वाग्जन्यत्वात् सर्वरसात्मकत्वम् ..... भारतीय रूपत्वात् भारतीति। शारदातनय ने ब्रह्मा के चारों मुखों से वृत्तियों का जन्म माना है। एक के अनुसार इसका सम्बन्ध शंकर के नृत्य से माना गया है।

निष्कर्ष – निष्कर्ष यह कि नाट्य वृत्तियों की विभिन्न प्रकार की कल्पनाएँ अनादि काल से की जाती रही हैं, जिसमें लौकिक अलौकिक दोनों प्रकार की स्थिति देखी जा सकती है। स्पष्ट है कि इसके उद्भव का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। वेदों से इसकी धारा फूटती नजर आती है। साथ ही इसका क्षेत्र नाटक तथा उससे सम्बद्ध रसों की दृष्टि से अत्यन्त व्यापक है। कोमल से लेकर रौद्र तक तथा सुन्दर से लेकर वीभत्स तक की सारी स्थितियाँ इसमें समाविष्ट हैं। वृत्तियों का सम्बन्ध सम्पूर्ण नाटक की समस्त गतिविधियाँ से होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि नाट्य वृत्तियों का सम्बन्ध रसाभिनय से है। रसोन्मेष की दृष्टि से यह कहना उपयुक्त होगा कि अभिनय नायक का प्राण है और वृत्तियों को अभिनय का प्राण कहना चाहिए। अतएव, रस की कल्पना ही वृत्तियों के अभाव में नहीं की जा सकती। कहना तो उचित यह होगा कि रस और वृत्तियाँ एक दूसरे से पूरक और समर्थक है। दोनों का अत्यन्त महरा सम्बन्ध है। 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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